"बहस के नाम पर बवाल: क्या असहमति का जवाब अब हिंसा से मिलेगा?" बीते दिनों News Nation के लाइव शो में IIT Baba के साथ हुई मारपीट ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अब असहमति को बर्दाश्त करना समाज के लिए मुश्किल हो गया है? क्या बहस अब तर्कों से नहीं बल्कि थप्पड़ों और घूंसों से जीती जाएगी? यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। क्या बहस अब हिंसा में बदल रही है? लोकतंत्र में असहमति कोई नई बात नहीं है। भारत का संविधान हमें विचारों की स्वतंत्रता देता है, लेकिन जब विचारधारा के टकराव को हिंसा का सहारा लेकर दबाने की कोशिश की जाती है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। आजकल टीवी डिबेट्स और सोशल मीडिया में जिस तरह की उत्तेजना और आक्रामकता बढ़ रही है, वह साफ दिखाती है कि असहमति को सहने की शक्ति कमजोर पड़ रही है। डिबेट्स जानकारी और तर्क-वितर्क का माध्यम होने के बजाय व्यक्तिगत हमले और नफरत का अड्डा बनती जा रही हैं। मीडिया डिबेट्स या रेसलिंग का अखाड़ा? पहले टीवी डिबेट्स में ज्ञानवर्धक चर्चाएं होती थीं, लेकिन अब कई बा...
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